अपने गुण एवं दूसरों के दोष देखना मनुष्य की प्रकृति है | किन्तु
ऐसा करना सर्वथा अनुचित है | हमें यह समझ लेना चाहिए कि यदि
हम किसी की लाल आँखों को देखते हैं तो पीड़ा हमें भी होती है,
हमारी आँखों से पानी बहने लगता है और हम तुरंत ही वहाँ देखना बंद कर देते हैं | इसीलिए किसी की दुखती आँख या कोई दोष न देखने में ही हमारा हित है | जब हम किसी के अवगुण देखते हैं तो वे अवगुण हमारे मन पर अपना दुष्प्रभाव
छोड़ जाते हैं | सही मायने में बुद्धिमान वही होता है जो
दूसरों के दोष नहीं बल्कि गुण देखता है | इस प्रकार वह
दूसरों के गुण ग्रहण करने की क्षमता बढ़ाता है | वही मनुष्य
सफल होता है जो सहज ही दूसरों के गुण अपना लेता है | जैसे एक
गंदा नाला जब गंगा नदी में मिलता है वह अपनी सारी गंदगी को छोड़ गंगामय हो जाता है | दूसरी तरफ देखें तो गंगा में पड़ा एक बड़ा सा पत्थर अपने कठोर स्वभाव के
कारण वहीं पड़ा रहता है, उसमें एक भी बूँद गंगा जल नहीं समाता
| उसकी कठोरता या अहं ही उसका गंगाजल में विलीन होने में बड़ी
बाधा है | अतः हमें सहज होकर ही दूसरों के गुणों को अपने में
समाहित कर लेना चाहिए क्योंकि जैसी हमारी दृष्टि होगी वैसी ही हमारे विचारों की
सृष्टि होगी | हमारे हाथ में गुलाब होगा तो उसकी महक चहुं ओर
फैलेगी, गंदी वस्तु से दुर्गंध फैलेगी जो हमारे मन में उबकाई
लाएगी और दूसरों के मन में घृणा |
उपर्युक्त गदयांश को ध्यान से पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
प्रश्न १ मनुष्य की प्रकृति क्या है ?
प्रश्न २ दूसरों की लाल आँखें देखने पर हमें क्या
होता है ?
प्रश्न ३ हमारे मन पर अपना दुष्प्रभाव कौन छोड़ता है ?
प्रश्न ४ गदयांश के अनुसार बुद्धिमान व्यक्ति कौन है ?
प्रश्न ६ संसार में कैसा मानव सफल होता है ?
प्रश्न ७ गंगा में स्थित पत्थर गंगाजल समाहित क्यों नहीं
हो पाता ?
प्रश्न ८ वाक्य पूरा कीजिए –
जैसी हमारी होगी वैसी ही हमारे
विचारों की होगी |
प्रश्न ९ निम्नलिखित शब्दों के एक-एक पर्यायवाची शब्द लिखिए –
१ महक २ बाधा
प्रश्न १० गदयांश से दो सर्वनाम शब्द चुनकर लिखिए -