अपठित ४३
वर्तमान समय
में मनुष्य तनाव ,चिंता ,अवसाद जैसी समस्याओं से जूझ रहा
है | शांति की तलाश में वह इधर-उधर
भटक रहा है | कभी वह मंदिर में जाता है तो कभी वह किसी प्राकृतिक स्थल
पर जाता है, किन्तु समस्याएँ तो उसका पीछा
ही नहीं छोड़तीं | वे तो जैसे उसके साथ-साथ मुफ्त में ही सवारी करती उसके साथ
ही चली आतीं हैं | कैसे मुक्त हो वह इनसे ? कैसे छुटकारा पाए ? कैसे उन्मुक्त ,प्रसन्न जीवन जिए ? जहाँ भी जाता है वह , अपने साथ आधुनिक युग की देन मोबाइल जिसे वह
अपना प्रिय मित्र मानता है साथ में सदैव रखता है ,जो चाहे-अनचाहे समय पर अपनी उपस्थिति
प्रमाणित करता रहता है | और शांति-सुकून की तलाश में आए प्राणी को उसी अवस्था में
पहुँचा देता है जिससे बचने के लिए वह इतनी दूर शांति की खोज में आया था | बिल्कुल निराश-हताश होकर वह किसी का कंधा
ढूँढता है जहाँ वह अपने दुखों-पीड़ाओं को कम कर सके | इस तरह वह अनेकों बीमारियों से घिर जाता है
| चिकित्सक के पास जाता है औषधियों
को भोजन में सम्मिलित कर लेता है ,पर क्या कुछ लाभ हुआ ? नहीं | पुनः प्रयासरत होता है | अबकी बार वह किसी महात्मा या गुरु की तलाश
में भटकता है | प्राचीन काल की भाँति अब गुरु तो नहीं मिलते पर मिल जाते
हैं पाखंडी ,धोखेबाज़, जो ऐसे लोगों को आसानी से अपना शिकार बना उन्हें निरंतर लूटते
रहते हैं | और वह एक बार पुनः अपनी पुरानी
स्थिति में पहुँच जाता है | किन्तु क्या कभी उसने अपने घर में रखे धार्मिक ग्रंथों की
धूल साफ कर उनका अध्ययन-मनन करने का विचार किया है ? नहीं | उसके लिए तो वे घर की सजावट की वस्तु हैं
या फिर आपके किसी धर्म विशेष का होने का प्रमाण पत्र | कभी उनको खोलकर, उन्हें अपना गुरु मानकर उसमें लिखी बातों
को अपनाया ही नहीं ,बस भटकता रहा इधर-उधर | जब वह पढ़ेगा ही नहीं अपने धार्मिक ग्रंथों
को तो अपनी अगली पीढ़ी को क्या संस्कार देगा | टी वी ,मोबाइल चिंताएँ ,आक्रोश आदि ऐसी ही समस्याओं के
उपहार ? फिर अगली पीढ़ी भी उसकी ही भाँति
इधर-उधर भटके और जीवन के सौंदर्य का आनंद न उठाकर तृष्णा-अवसाद सी ही पीड़ित रहे | घूमिए , दुनिया की सैर कीजिए , नए लोगों से ,नई संस्कृति से परिचय करिए ,किन्तु प्रसन्न होकर | किसी गुरु की तलाश न करें | कलयुग में सच्चा गुरु मिलना दुष्कर है | अपने धार्मिक ग्रंथों को अपना गुरु बनाइए, उनका अध्ययन-मनन एवं चिंतन कीजिए ,फिर देखिए जीवन कितना सुंदर हो
जाएगा | सभी धर्मों में एक ही बात को
बताया गया है “वसुधेव कुटुंबकम” अर्थात पूरी पृथ्वी एक परिवार है | सभी प्राणी एक ही परिवार के हैं, जब मनुष्य इसी सोच के साथ जीवन में आगे बढ़ता
है तो उसके जीवन में प्रेम-शांति ,सौहार्द मित्रता, भाई-चारा परोपकार जैसे गुणों का विकास होता
है | लड़ाई-झगड़ा, बैर-द्वेष, ईर्ष्या जैसी विकृतियाँ उसके जीवन से दूर
रहती हैं | फिर उसे किसी गुरु की तलाश नहीं
होती, उसका सच्चा गुरु तो उसके अपने
ग्रंथ ही होते हैं जो हजारों वर्ष पूर्व ही लिखे जा चुके थे | अतः हमें अपने धार्मिक ग्रंथों का सम्मान
करना चाहिए, उसमें बतायी गई बातों को जीवन
में उतार कर सत्यम-शिवम ,सुंदरम की ओर अग्रसर होना चाहिए | इस अनमोल जीवन का तनाव मुक्त होकर आनंद लेना
चाहिए, क्योंकि “ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा”|
प्रश्न
१ शब्दों के पर्यायवाची लिखिये –
१ गुरु २ चिकित्सक
प्रश्न
२ इक प्रत्यय वाले शब्द गदयांश से ढूँढकर लिखिये –
प्रश्न
३ वर्तमान समय
में मनुष्य किन समस्याओं
से जूझ रहा है ?
प्रश्न
४ शांति की तलाश में वह कहाँ-कहाँ जाता है ?
प्रश्न
५ मनुष्य किसे
सदैव अपने साथ रखता है ?
प्रश्न ६ गदयांश में प्रयुक्त संस्कृत
उक्तियों को ढूँढकर लिखिये –
प्रश्न
७ गदयांश में किससे सीख लेने के लिए बल दिया गया है ?
प्रश्न
८ सभी ग्रंथों में किस बात को अपनाने पर बल दिया गया है ?
प्रश्न
९ मनुष्य का सच्चा गुरु कौन है |
प्रश्न
१० गदयांश का उचित शीर्षक बताइए -