Monday 1 July 2019


     अपठित पदयांश

मैं हूँ एक बदली, कुछ बदली-बदली,
धुन है सवार कुछ करने की
आगे बढ़कर, न पीछे मुड़ने की
न अलसाई , न मुरझाई
हूँ शरद धूप सी खिली-खिली |
मैं एक बदली, कुछ बदली-बदली

बरसाती हूँ मैं अपनापन ,
हर लेती मन का सूनापन
हर पीड़ा को हरने की चाह लिए
बन जाती हूँ अक्षय वट सी
मैं एक बदली, कुछ बदली-बदली |

उपर्युक्त पदयांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
प्रश्न १ – पदयांश में कवयित्री ने बदली किसे कहा है ? चित्रण कीजिये –
प्रश्न २ – न अलसाई , न मुरझाई से क्या तात्पर्य है ?
प्रश्न ३ – शरद ऋतु की धूप का वर्णन अपने शब्दों में कीजिये –
प्रश्न ४ – हर शब्द पदयांश में कितनी बार प्रयुक्त हुआ है ? बताइये एवं उसके अलग-अलग अर्थ स्पष्ट कीजिये
प्रश्न ५ – प्रस्तुत पदयांश को क्या नाम देना चाहेंगे ?
प्रश्न ६ – भारत देश की प्रमुख ऋतुओं के नाम क्या हैं ?
प्रश्न ७- निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए –
      अपनापन , अक्षय
प्रश्न ८ – मेघ शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए
प्रश्न ९ – पदयांश में कितनी बार ई प्रत्यय प्रयुक्त हुआ है ? ई प्रत्यय वाले शब्द चुनकर लिखिए
प्रश्न १० - पदयांश में प्रयुक्त संज्ञा शब्द ढूंढकर लिखिए -

Thursday 23 May 2019


अपठित  44

ढ़ाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय कबीरदास ने यूँ ही नहीं लिखा | प्रेम के ढाई अक्षरों में वो शक्ति है कि अनहोनी को होनी में तथा असंभव को संभव में बदल देते हैं | प्रेम की भाषा सदैव सकारात्मक होती है| जिसे हम अपना कहते हैं या अपना मानते हैं, उनके प्रति हमारा व्यवहार यदि प्रेम भरा होता है तो हमेशा सकारात्मक संदेश ही जाते हैं | ऐसे सकारात्मक विचार ,जो मनुष्य को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं | अतः हमें प्रेम की भाषा को ही अपनाना चाहिए | प्रेम की भाषा के सहयोगी शब्द हैं – प्रशंसा , सहयोग और कीमती समय | इनकी उपलब्धि मनुष्य को ऊंचाइयों तक पहुँचाने की शक्ति रखती है | यदि आपको प्रेममयी भाषा का पंडित बनना है तो अपने शब्द भंडार से भयंकर ,बेकार ,नहीं हो सकता ,कभी नहीं आदि शब्दों को हमेशा के लिए विदा कर  दीजिये | अत्यधिक काम के बोझ तले कामकाजी माता-पिता जब थके-हारे घर आते हैं तो अपनी नन्ही सी जान से न तो ठीक से बात करते हैं न ही उसकी दिनचर्या के बारे में जानने की उत्सुकता उनमें होती है | बस एक ही धुन रहती है कि बच्चे के अंक ठीक आ जाएँ और वह पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करे | बच्चे के कोमल मन को पढ़ने का उनके पास समय ही कहाँ ? प्रदर्शन ठीक न होने पर वे उसे कोसना भी नहीं भूलते | तुमसे कुछ नहीं हो सकता , तुम जीवन में कुछ नहीं कर पाओगे , तुम तो हो ही नालायक  | जब ऐसे तीक्ष्ण शब्द बाणों से कोमल मन आहत होता है तो वह भी ठान लेता है कि ठीक है जाओ भाड़ में , मुझे भी कुछ नहीं करना’| ऐसा नकारात्मक व्यवहार अपराधों को ही जन्म देता हैक | इसके विपरीत यदि प्रेम से समझाकर बात की जाए , मन को टटोला जाए , सारे दिन की बात पूछी जाए तो परिणाम सुखद ही होगा | बालमन कुंठाग्रस्त नहीं होगा , सुरक्षित महसूस करेगा | चंचल मन सुदृढ़ बनेगा | सारी चिंताओं से मुक्त होकर निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा | अतः प्रेम की शब्दावली को मजबूत बनाएँ और सहयोग के लिए सदैव आगे आएं | आजकल रिश्तों में कटुता इसलिए आती है क्योंकि लोग एक दूसरे के साथ वस्तुगत व्यवहार करते हैं यूज़ एंड थ्रो वाला | फिर भी यदि कोई परेशानी में है तो उसका हाथ थामिए | हो सकता है विपत्ति समाप्त होते ही वह तुम कौन ? वाला व्यवहार करे , हो सकता है ये शब्द भी कानों में गरम तेल उंडेलने का कार्य करें कि तुम नहीं करते तो कोई और करता | किन्तु विश्वास कीजिए जो सुख देने में है वो अनयंत्र नहीं | इसलिए अपनी मुट्ठी बंद मत करिए अपना हाथ और मन हमेशा खुला रखिए | शब्दों में प्रेममयी भाषा हो , सकारात्मक विचार हों तो दुनिया आपकी है |  
प्रश्न १ ढ़ाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय यह कथन किसका है ?
प्रश्न २  प्रेम के ढाई अक्षरों में कैसी  शक्ति है ?
प्रश्न ३  मनुष्य को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कौन करते हैं ?
प्रश्न ४ अपने शब्द भंडार से कौन से शब्दों को हमेशा के लिए विदा कर देना चाहिए ?
प्रश्न ५ आजकल रिश्तों में कटुता क्यों आती है ?
प्रश्न ६ निम्न शब्दों के विलोम शब्द लिखिए -
१ विश्वास   २ समाप्त
प्रश्न ७ निम्न शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए -
१ प्रगति  २ माता
प्रश्न ८ गदयांश से दो संज्ञा शब्द चुनकर लिखिए -
प्रश्न ९ गदयांश से दो विशेषण  शब्द चुनकर लिखिए -
प्रश्न १० गदयांश का उचित शीर्षक बताइए -

Monday 20 May 2019


अपठित ४३ 

वर्तमान समय में मनुष्य तनाव ,चिंता ,अवसाद जैसी समस्याओं से जूझ रहा है | शांति की तलाश में वह इधर-उधर भटक रहा है | कभी वह मंदिर में जाता है तो कभी वह किसी प्राकृतिक स्थल पर जाता है, किन्तु समस्याएँ तो उसका पीछा ही नहीं छोड़तीं | वे तो जैसे उसके साथ-साथ मुफ्त में ही सवारी करती उसके साथ ही चली आतीं हैं | कैसे मुक्त हो वह इनसे ? कैसे छुटकारा पाए ? कैसे उन्मुक्त ,प्रसन्न जीवन जिए ? जहाँ भी जाता है वह , अपने साथ आधुनिक युग की देन मोबाइल जिसे वह अपना प्रिय मित्र मानता है साथ में सदैव रखता है ,जो चाहे-अनचाहे समय पर अपनी उपस्थिति प्रमाणित करता रहता है | और शांति-सुकून की तलाश में आए प्राणी को उसी अवस्था में पहुँचा देता है जिससे बचने के लिए वह इतनी दूर शांति की खोज में आया था | बिल्कुल निराश-हताश होकर वह किसी का कंधा ढूँढता है जहाँ वह अपने दुखों-पीड़ाओं को कम कर सके | इस तरह वह अनेकों बीमारियों से घिर जाता है | चिकित्सक के पास जाता है औषधियों को भोजन में सम्मिलित कर लेता है ,पर क्या कुछ लाभ हुआ ? नहीं | पुनः प्रयासरत होता है | अबकी बार वह किसी महात्मा या गुरु की तलाश में भटकता है | प्राचीन काल की भाँति अब गुरु तो नहीं मिलते पर मिल जाते हैं पाखंडी ,धोखेबाज़, जो ऐसे लोगों को आसानी से अपना शिकार बना उन्हें निरंतर लूटते रहते हैं | और वह एक बार पुनः अपनी पुरानी स्थिति में पहुँच जाता है | किन्तु क्या कभी उसने अपने घर में रखे धार्मिक ग्रंथों की धूल साफ कर उनका अध्ययन-मनन करने का विचार किया है ? नहीं | उसके लिए तो वे घर की सजावट की वस्तु हैं या फिर आपके किसी धर्म विशेष का होने का प्रमाण पत्र | कभी उनको खोलकर, उन्हें अपना गुरु मानकर उसमें लिखी बातों को अपनाया ही नहीं ,बस भटकता रहा इधर-उधर | जब वह पढ़ेगा ही नहीं अपने धार्मिक ग्रंथों को तो अपनी अगली पीढ़ी को क्या संस्कार देगा | टी वी ,मोबाइल चिंताएँ ,आक्रोश आदि ऐसी ही समस्याओं के उपहार ? फिर अगली पीढ़ी भी उसकी ही भाँति इधर-उधर भटके और जीवन के सौंदर्य का आनंद न उठाकर तृष्णा-अवसाद सी ही पीड़ित रहे | घूमिए , दुनिया की सैर कीजिए , नए लोगों से ,नई संस्कृति से परिचय करिए ,किन्तु प्रसन्न होकर | किसी गुरु की तलाश न करें | कलयुग में सच्चा गुरु मिलना दुष्कर है | अपने धार्मिक ग्रंथों को अपना गुरु बनाइए, उनका अध्ययन-मनन एवं चिंतन कीजिए ,फिर देखिए जीवन कितना सुंदर हो जाएगा | सभी धर्मों में एक ही बात को बताया गया है “वसुधेव कुटुंबकम” अर्थात पूरी पृथ्वी एक परिवार है | सभी प्राणी एक ही परिवार के हैं, जब मनुष्य इसी सोच के साथ जीवन में आगे बढ़ता है तो उसके जीवन में प्रेम-शांति ,सौहार्द मित्रता, भाई-चारा परोपकार जैसे गुणों का विकास होता है | लड़ाई-झगड़ा, बैर-द्वेष, ईर्ष्या जैसी विकृतियाँ उसके जीवन से दूर रहती हैं | फिर उसे किसी गुरु की तलाश नहीं होती, उसका सच्चा गुरु तो उसके अपने ग्रंथ ही होते हैं जो हजारों वर्ष पूर्व ही लिखे जा चुके थे | अतः हमें अपने धार्मिक ग्रंथों का सम्मान करना चाहिए, उसमें बतायी गई बातों को जीवन में उतार कर सत्यम-शिवम ,सुंदरम की ओर अग्रसर होना चाहिए | इस अनमोल जीवन का तनाव मुक्त होकर आनंद लेना चाहिए, क्योंकि “ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा”|
प्रश्न १ शब्दों के पर्यायवाची  लिखिये –
१ गुरु         २ चिकित्सक
प्रश्न २ इक प्रत्यय वाले शब्द गदयांश से ढूँढकर लिखिये –
प्रश्न ३ वर्तमान समय में मनुष्य किन समस्याओं से जूझ रहा है ?
प्रश्न ४ शांति की तलाश में वह कहाँ-कहाँ जाता है ?
प्रश्न ५ मनुष्य किसे सदैव अपने साथ रखता है ?
प्रश्न ६ गदयांश में प्रयुक्त संस्कृत उक्तियों को ढूँढकर लिखिये
प्रश्न ७ गदयांश में किससे सीख लेने के लिए बल दिया गया है ?
प्रश्न ८ सभी ग्रंथों में किस बात को अपनाने पर बल दिया गया है ?
प्रश्न ९ मनुष्य का सच्चा गुरु कौन है |
प्रश्न १० गदयांश का उचित शीर्षक बताइए -


Tuesday 14 May 2019

                                                अपठित गदयांश ४२ 
हम कार्यरत हैं और उस कार्य में सफलता नहीं मिलती है तो हम हताश होकर कह उठते हैं कि ऐसा होना मेरे भाग्य में नहीं थाअतः हमारा यह कार्य पूर्ण नहीं हुआ | हम भाग्य को दोष देने लगते हैं और भाग्य को ही सर्वोपरि रखते हैं जबकि कुछ लोग कर्म को ही प्रधान मानते हैं, वे कहते हैं कि कर्म से बढ़कर कुछ नहीं | एक पौराणिक प्रसंग के अनुसार एक बार नारद जी भगवान श्री हरि के पास वैकुंठधाम गए | श्री हरि ने उन्हें आया देख उनका प्रणाम स्वीकार कर आने का कारण पूछा | बड़े विचलित थे नारद जी  उन्होंने कहा प्रभु ऐसा क्यों होता है कि सत्य के मार्ग पर चलने वालों का भला नहीं होता जबकि बुरे कर्म करने वालों का भला होता है’| श्री हरि ने कहा- ऐसा नहीं है, देवर्षि! जो होता है सब नियति के कारण होता है, आपने ऐसा क्या देख लिया’| तब मानस पुत्र ने भगवान विष्णु से कहा “मैंने आज जंगल में दल-दल में फँसी एक गाय को देखा , उसको बाहर निकालने में कोई सहायता नहीं कर रहा था, एक चोर वहाँ से गुजरा  गाय को बाहर निकालने के बजाय वह उसके ऊपर पैर रख कर ही चला गया और इतना ही नहीं प्रभु आगे जाकर उसे स्वर्ण मुद्राओं से भरी एक थैली मिली | थोड़ी देर में वहाँ से एक साधु गुजरा उसने गाय को बाहर निकाला किन्तु यह क्या भगवन वह आगे जाकर एक गड्ढे में गिर गया | यह कौन सा न्याय है ? नारायण !” | तब लक्ष्मीपति ने देवर्षि से कहा , जिस चोर को स्वर्ण मुद्राएँ मिली उसकी किस्मत में बड़ा खजाना था, किन्तु इस पाप के कारण उसे नहीं मिला, जबकि साधु ने पुण्य करके अपनी मृत्यु को टाल दिया और  गड्ढे में गिरकर उसकी मृत्यु छोटी सी चोट में परिवर्तित हो गई | अब तो आपको यह विश्वास हो गया होगा कि मनुष्य के कर्मों से ही उसके भाग्य की रूपरेखा बनती है | अतः हर मनुष्य को केवल अपना कर्म करना  चाहिए , भाग्य के भरोसे नहीं बैठना चाहिए | जैसा कि श्री कृष्ण द्वारा गीता में भी कहा गया है कर्मण्यकाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन | सच में कर्म हमारे हाथों की लकीरों को बदल देते हैं  |
प्रश्न १ कर्मण्यकाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन यह उक्ति किसने कही है , तथा यह किस भाषा में है ?

प्रश्न २ मनुष्य को सफलता न मिले तो वह किसे दोष देता है ?

प्रश्न ३ इस गदयांश में किसके बीच वार्तालाप हो रही है ? उनके नाम लिखिये -

प्रश्न ४ निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिये -

न्याय                 पाप                  मृत्यु                 बुरे


प्रश्न ५ निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखिये –

नारद               हरि

प्रश्न ६ वाक्य पूरा कीजिए- मनुष्य के     से ही उसके        की रूपरेखा बनती है

प्रश्न ७ निम्नलिखित शब्दों में अ उपसर्ग लगाकर विलोम शब्द बनाइए –

सत्य                 सफलता               विश्वास               पूर्ण

प्रश्न ८ पूर्व ज्ञान के आधार पर बताइए कि श्री कृष्ण ने गीता किसे सुनाई थी ?

प्रश्न ९ हमें पशुओं के प्रति कैसा व्यवहार करना चाहिए ?

प्रश्न १० गदयांश को उचित शीर्षक दीजिए -

Thursday 9 May 2019

किसी भी देश की पहचान उस देश के नागरिकों से होती है | यदि देश के नागरिक सभ्य, सुसंस्कृत तथा देश के प्रति समर्पित हैं तो उस देश की उन्नति निश्चित समझो | अतः सभी मनुष्यों का दायित्व  है कि देश एवं समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी से करें | हम अपने लिए तो सब कुछ चाहते हैं किन्तु करना कुछ नहीं चाहते | हमारे लिए अधिकार सर्वोपरि हैं और हम अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाते हैं | हम अपने अधिकारों के लिए धरना देते हैं , दूसरों को कोसते हैं , तरह-तरह के आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं | किन्तु अपने कर्तव्यों को पूरी तरह अनदेखा कर देते हैं | प्रत्येक नागरिक में यदि देश के प्रति सकारात्मक सोच हो तो ऐसा देश उन्नति के पथ पर अग्रसर रहता है | कई बार हम अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए सामाजिक हित को अनदेखा कर देते हैं | इस प्रवृत्ति के कारण देश की प्रगति अवरुद्ध हो जाती है | इससे व्यक्ति का तथा समाज का समुचित विकास नहीं हो पाता और ऐसा राष्ट्र आदर्श राष्ट्र नहीं बन पाता | कुछ छोटी-छोटी बातों जैसे सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी न फैलाना , शौचालयों का प्रयोग करना ,वैवाहिक आदि कार्यक्रमों में लाउडस्पीकर का मंद आवाज में प्रयोग करना , प्रतिबंधित क्षेत्रों में प्रवेश न करना असहायों की सहायता करना , रिश्वतख़ोरी से दूर रहना | ऐसे न जाने कितने कर्तव्य हैं जिनका पालन कर हम देश की प्रगति में सहयोग कर सकते हैं | हमें याद रखना चाहिए , जब-जब देश के नागरिकों ने उपरोक्त दुर्गुणों को अपनाया उन्हें गुलामी की जंजीरों ने जकड़ा और जब हम एकजुट हुए अपने कर्तव्यों का पालन किया , पूरा आसमान हमने अपनी मुट्ठी में बंद कर लिया |
अपठित गदयांश को ध्यान से पढ़कर उत्तर दीजिये –
प्रश्न १ गदयांश का उचित शीर्षक बताइये |
प्रश्न २ कैसा देश उन्नति के पथ पर अग्रसर रहता है ?
प्रश्न ३ गद्याश में बताए गए दुर्गुणों में से कोई दो लिखिए |
प्रश्न ४ किन परिस्थितियों में देश गुलाम बना ?
प्रश्न ५ पूरा आसमान हमारी मुट्ठी में कब बंद होता है ?
प्रश्न ६ गदयांश में प्रयुक्त उपसर्ग ढूंढकर लिखिए-
प्रश्न ७ गदयांश में प्रयुक्त प्रत्यय ढूंढकर लिखिए-
प्रश्न ८ निम्न शब्दों के विलोम शब्द लिखिए –
१ हित - २ देश
प्रश्न ९ निम्न शब्द के दो  पर्यायवाची शब्द लिखिए –
आसमान १  २
प्रश्न १० गदयांश में प्रयुक्त योजक शब्द ढूंढकर लिखिए -
किसी भी देश की पहचान उस देश के नागरिकों से होती है | यदि देश के नागरिक सभ्य, सुसंस्कृत तथा देश के प्रति समर्पित हैं तो उस देश की उन्नति निश्चित समझो | अतः सभी मनुष्यों का दायित्व  है कि देश एवं समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी से करें | हम अपने लिए तो सब कुछ चाहते हैं किन्तु करना कुछ नहीं चाहते | हमारे लिए अधिकार सर्वोपरि हैं और हम अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाते हैं | हम अपने अधिकारों के लिए धरना देता हैं , दूसरों को कोसते हैं , तरह-तरह के आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं | किन्तु अपने कर्तव्यों को पूरी तरह अनदेखा कर देते हैं | प्रत्येक नागरिक में यदि देश के प्रति सकारात्मक सोच हो तो ऐसा देश उन्नति के पथ पर अग्रसर रहता है | कई बार हम अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए सामाजिक हित को अनदेखा कर देते हैं | इस प्रवृत्ति के कारण देश की प्रगति अवरुद्ध हो जाती है | इससे व्यक्ति का तथा समाज का समुचित विकास नहीं हो पाता और ऐसा राष्ट्र आदर्श राष्ट्र नहीं बन पाता | कुछ छोटी-छोटी बातों जैसे सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी न फैलाना , शौचालयों का प्रयोग करना ,वैवाहिक आदि कार्यक्रमों में लाउडस्पीकर का मंद आवाज में प्रयोग करना , प्रतिबंधित क्षेत्रों में प्रवेश न करना असहायों की सहायता करना , रिश्वतख़ोरी से दूर रहना | ऐसे न जाने कितने कर्तव्य हैं जिनका पालन कर हम देश की प्रगति में सहयोग कर सकते हैं | हमें याद रखना चाहिए , जब-जब देश के नागरिकों ने उपरोक्त दुर्गुणों को अपनाया उन्हें गुलामी की जंजीरों ने जकड़ा और जब हम एकजुट हुए अपने कर्तव्यों का पालन किया , पूरा आसमान हमने अपनी मुट्ठी में बंद कर लिया |
अपठित गदयांश को ध्यान से पढ़कर उत्तर दीजिये –
प्रश्न १ गदयांश का उचित शीर्षक बताइये |
प्रश्न २ कैसा देश उन्नति के पथ पर अग्रसर रहता है ?
प्रश्न ३ गद्याश में बताए गए दुर्गुणों में से कोई दो लिखिए |
प्रश्न ४ किन परिस्थितियों में देश गुलाम बना ?
प्रश्न ५ पूरा आसमान हमारी मुट्ठी में कब बंद होता है ?
प्रश्न ६ गदयांश में प्रयुक्त उपसर्ग ढूंढकर लिखिए-
प्रश्न ७ गदयांश में प्रयुक्त प्रत्यय ढूंढकर लिखिए-
प्रश्न ८ निम्न शब्दों के विलोम शब्द लिखिए –
१ हित - २ देश
प्रश्न ९ निम्न शब्द के दो  पर्यायवाची शब्द लिखिए –
आसमान १  २
प्रश्न १० गदयांश में प्रयुक्त योजक शब्द ढूंढकर लिखिए -

Friday 3 May 2019



अपठित 40


गर्मियों की छुट्टियाँ आरंभ होने वाली हैं | छुट्टियाँ ही ऐसा समय होता है जब बच्चे हों या बड़े सभी अपने-अपने अधूरे शौक या फिर अधूरे कार्य पूरे करने की योजना बनाकर उन कार्यों को पूरा कर मंजिल तक पहुँचते हैं | मेरे नन्हें दोस्तों आपने भी कुछ विशेष योजनाएँ बनाई होंगी अगर नहीं तो आपके लिए कुछ खास है जिन्हें अपनाकर आप अपनी छुट्टियों का भरपूर आनंद उठा सकते हैं, कुछ नया सीखने के साथ ही बड़ों की प्रशंसा भी प्राप्त कर सकते हैं | बस आपको इतना ही करना है कि अपने मन को टटोलिए कि कहीं कुछ ऐसा तो नहीं जो आप बहुत समय से करना चाहते हैं और समयाभाव के कारण नहीं कर पा रहे हैं | ऐसे कार्यों की सूची बनाइए और प्राथमिकता के अनुसार कार्य करना शुरू कर दीजिए |
गर्मियों में दिन बहुत बड़े होते हैं अतः समय भी बहुत मिलता है और भूख भी बहुत लगती है | पानी की कमी न हो इसलिए खूब पानी पीजिए | नीबू-पानी बनाना सीखिये, स्वयं पीजिए और अपने दादा-दादी , माँ-पिताजी को भी पिलाइए | आप घर में आए अतिथियों को भी पिला सकते हैं | इस प्रकार आप अपने घर में सहयोग तो दे ही रहे हैं साथ में आत्मनिर्भर भी बन रहे हैं | इसी प्रकार आप घर के और भी छोटे-मोटे कार्य कर हर दिन कुछ न कुछ सीख सकते हैं | खाने-पीने की चीजें बनाना , घर की साज-सज्जा करना , बाज़ार से छोटा-मोटा सामान लाना, इन सब कार्यों से आपका आत्मविश्वास भी बढ़ता है | वृद्धों के साथ समय बिताइए , उनके अनुभवों को जानिए, उनसे किस्से-कहानियाँ सुनिए | ऐसा करने पर उनको जितनी खुशी मिलेगी उससे कहीं ज्यादा लाभ आपको मिलेगा | आपके ज्ञान के भंडार में वृद्धि होगी , जिसका समय आने पर आप सदुपयोग कर सकेंगे | प्रतिदिन कोई न कोई खेल खेलकर आप अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रख सकते हैं | जीवन में जब आप स्वस्थ रहेंगे तभी तो आप वह सब कुछ पा सकेंगे जो आप प्राप्त करना चाहते हैं | क्योंकि कहा भी गया है कि स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है |
अनुच्छेद को ध्यान से पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
प्रश्न १ किसी भी कार्य को करने से पहले योजना क्यों बनाना चाहिए ?
प्रश्न २ गर्मियों में हमें अधिक समय क्यों मिलता है ?
प्रश्न ३ स्वविवेक से उत्तर दीजिए कि हमें गर्मियों में अधिक पानी क्यों पीना चाहिए ?
प्रश्न ४ आप इस अनुच्छेद को क्या नाम देना चाहेंगे ?
प्रश्न ५ अनुच्छेद से चार सन्युक्ताक्षर चुनकर लिखिए -
प्रश्न ६  अनुच्छेद से चार योजक चिन्ह वाले शब्द चुनकर लिखिए –
प्रश्न ७ अनुच्छेद से चार संज्ञा शब्द चुनकर लिखिए –
प्रश्न ८ अनुच्छेद से चार सर्वनाम शब्द चुनकर लिखिए –
प्रश्न ९ अनुच्छेद से चार विशेषण  शब्द चुनकर लिखिए –
प्रश्न १० अपने शब्दों में बताइए कि आपको अनुच्छेद में बताई गई बातें कैसी लगीं , इन बातों  को अपनाकर आपको क्या-क्या लाभ हुआ ?

Saturday 26 January 2019



                            अपठित ३९
कहते हैं न कि “मन के हारे हार है मन के जीते जीत” अर्थात आप यदि आत्मविश्वास से भरपूर हैं तो जीत आपकी निश्चित है , जरा सा भी मन विचलित हुआ नहीं कि आपको हार ने जकड लिया | इसीलिए मनुष्य में आत्मविश्वास का होना अत्यंत आवशयक है | कितनी भी कठिन परिस्थिति क्यों न हो यदि  आप में आत्मविश्वास है तो आप बिना विचलित हुए अपने कार्य को सहजता से पूरा कर लेंगे | मिसाइल मैन के नाम से विख्यात और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का बचपन काफी गरीबी में बीता | अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए उन्हें अपने गृह नगर रामेश्वरम में अखबार तक बेचना पड़ा | एयरोनौटिकल इंजीनियरिंग में विशेषज्ञता के साथ प्रसिद्धि प्राप्त करने वाले  डॉ कलाम एक फाइटर पायलट बनना चाहते थे , किन्तु उनका यह सपना साकार नहीं हो पाया क्योंकि वह वायुसेना में उपलब्ध आठ स्थानों में नौवें स्थान पर आए , लेकिन उन्होंने अपने इस सपने की असफलता और पारिवारिक मजबूरियों को अपने जीवन की बाधा नहीं बनने दिया | यदि वे अपने जीवन में इस असफलता से निराश होकर सफल होने की कोशिश नहीं करते तो आज पूरी दुनिया एक असाधारण रूप से प्रतिभाशाली वैज्ञानिक की हैरतअंगेज कामियाबियों से वंचित रह जाती | एक अन्य प्रसंग श्री हनुमान जी का भी ले सकते हैं कि रावण की लंका में प्रवेश कर , मुख्य भवनों को ध्वस्त कर उसके सामने जिस निडरता के साथ उपस्थित हुए , वह सब केवल उनका आत्मविश्वास ही था | सच है कि आत्मविश्वास मानव जीवन में सफलता की सबसे बड़ी सीढ़ी है | यह एक ऐसा अस्त्र है जिसके बल पर दुनिया के किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है | आत्मविश्वास से आत्मबल प्राप्त होता है और यही मनुष्य को लोहे से भी मजबूत बनाता है | अतः हम जीवन में कितनी ही कठिन परिस्थितियों और मुसीबतों में क्यों न घिर जाएँ हमें आत्मविश्वास नहीं छोड़ना चाहिए | 
प्रश्न १ डॉ एपीजे अब्दुल कलाम भारत के कौन थे ?
प्रश्न २ उन्होंने किस क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त की थी ?
प्रश्न ३ वे क्या बनना चाहते थे ?
प्रश्न ४ डॉ  कलाम के गृह नगर का क्या नाम है ?
प्रश्न ५ अपनी पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए उन्हें क्या करना पड़ा ?
प्रश्न ६ मानव जीवन में सफलता की सीढ़ी क्या है ?
प्रश्न ७ आत्मबल हमें किससे प्राप्त होता है ?
प्रश्न ८ गद्यांश में कई प्रत्यय प्रयुक्त  हुए हैं | प्रत्यय वाले चार शब्द ढूंढ़कर लिखिए –
प्रश्न ९ कामयाबी शब्द का समानार्थी शब्द गद्यांश में दिया हुआ है , ढूंढ़कर लिखिए-
प्रश्न १० गद्यांश का उचित शीर्षक बताइए -